Maharashtra State Board Class 6th Hindi Medium General Science (सामान्य विज्ञान )

प्रश्न १. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखो।

अ .वनस्पति और प्राणी में अंतर स्पष्ट करो।

वनस्पति

प्राणी

१. अधिकांश वनस्पतियाँ स्वयंपोषी होती हैं।

१. सभी प्राणी परपोषी होते हैं।

२. वनस्पतियों में केवल स्थानीय हलचल होती हैं। वे स्थान नहीं बदल सकतीं।

२. प्राणियों में हलचल होती है और वे अपनी स्थान परिवर्तित कर सकते हैं।

३. वनस्पतियों की वृद्धि पूरे जीवनकाल तक होती रहती है

३. प्राणियों की वृद्धि एक निश्चित अवधि तक ही होती है।

४. पर्णहरित होने के कारण वनस्पतियाँ प्रकाश- संश्लेषण करती हैं।

४. प्राणी प्रकाश-संश्लेषण नहीं करते।

५. वनस्पतियों का श्वसन पत्तियों के सूक्ष्मछिद्रों द्वारा होता है।

५. प्राणियों में त्वचा, क्लोम तथा फेफड़ों जैसे विशिष्ट श्वसन अंग होते हैं।

६. वनस्पतियों का प्रजनन बीज, तने, पत्तियोंआदि अंगों द्वारा होते हैं।

६. प्राणियों में अंडे देने या जन्म देने की क्रियाओं द्वारा प्रजनन होता है।

आ. वनस्पति और प्राणी में समानता स्पष्ट करो।
उत्तर : वनस्पतियाँ तथा प्राणी दोनों सजीव हैं। दोनों में सजीवों लगभग सभी लक्षण पाए जाते हैं। वृद्धि, श्वसन, प्रजनन, उत्सर्जन तथा चेतनशीलता जैसे लक्षण दोनों में होते हैं। दोनों की रचना कोशिकीय होती है। प्राणियों की तरह वनस्पतियों को भी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। दोनों के जीवनकाल निश्चित होने के कारण उसका विनाश (मृत्यु) होता है।

इ. वनस्पति सृष्टि हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी हैं?
उत्तर : वनस्पतियाँ हमारे लिए कई प्रकार से उपयोगी हैं। इनसे हमें अनाज, दालें, फल, फूल आदि मिलते हैं। हरे, बहेड़े, अडूसे, शतावर जैसी वनस्पतियाँ औषधियाँ देती हैं। कुछ वनस्पतियाँ हमें लकड़ी देती हैं, जिनसे फर्निचर बनाए जाते हैं। इनसे हमें कपास, पटसन, सन आदि उपयोगी पदार्थ मिलते हैं। सूखी वनस्पतियों का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। इस प्रकार वनस्पति सृष्टि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।

ई. प्राणी सृष्टि हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी हैं ?
उत्तर : कई प्राणी ऐसे हैं, जिन्हें हम अपने घरेलू तथा खेती के कामें के लिए पालते हैं। कुत्ता एक स्वामिभक्त प्राणी है, जो घर की रखवाली के साथ-साथ पुलिस और सेना की भी सहायता करता है। बैलों से खेती के काम तथा मालढुलाई की जाती है। दूध देने वाले प्राणी भैंस, गाय इत्यादि हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। भेड से हमें ऊन, मांस तथा उसकी लेड़ी से उत्तम किस्म की प्राकृतिक खाद मिलती है।   प्राणियों की खाल तथा सींग भी हमारे लिए उपयोगी होती हैं। मुर्गियाँ अंडे प्रदान करती हैं। कुछ प्राणियों के मांस को खाद्य के रूप में  उपयोग में लाया जाता है।

उ. सजीव निर्जीवों की अपेक्षा भिन्न क्यों हैं?
उत्तर : सजीवों में वृद्धि, भोजनग्रहण, श्वसन, प्रजनन, उत्सर्जन, चेतनशीलता, हलचल आदि लक्षण पाये जाते हैं। सजीवों का जन्म होता है और उनकी मृत्यु होती है। परंतु, निर्जीवों में ये लक्षण होते ही नहीं। इसीलिए सजीव, निर्जीवों से पूर्णतः भिन्न होते हैं।

प्रश्न २. कौन किसकी सहायता से श्वसन करता है?

अ .मछली=> क्लोम (गलफड़े)

आ. साँप =>  फेफड़े

इ. सारस=>  फेफड़े

ई. केंचुआ =>त्वचा

उ. मानव =>फेफड़े

ऊ. बरगद का वृक्ष =>पत्तियों के छिद्र

ए. सूंड़ी =>श्वसनरंध्र (Spiracles).

प्रश्न ३. कोष्ठक में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति करो।
(ऑक्सीजन, मृत्यु, उत्सर्जन, कार्बन डाइऑक्साइड, चेतनाशीलता, प्रकाश संश्लेषण)

अ.अपना भोजन स्वयं तैयार करने की वनस्पतियों की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

आ. शरीर में ऑक्सीजन गैस लेने तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर छोड़ने की क्रिया को श्वसन कहते हैं।

इ. शरीर के निरुपयोगी पदार्थ बाहर निकालने की क्रिया को  उत्सर्जन कहते हैं ।

ई. किसी घटना पर अनुक्रिया करने की क्षमता को चेतनाशीलता कहते हैं।

उ. जीवनकाल पूर्ण हो जाने पर प्रत्येक सजीव की  मृत्यु  हो जाती है ।

प्रश्न ४. प्राणियों तथा वनस्पतियों के उपयोग लिखो।
प्राणी : मधुमक्खी, शार्क मछली, याक, भेंड़, केंचुआ, कुत्ता, सीप, घोड़ा, चूहा ।
उत्तर: (१) मधुमक्खी : मधुमक्खियाँ अपने छत्ते में औषधीय तरल शहद (मधु) का संग्रह करती हैं। इनसे हमें शहद तथा मधुमक्खी मोम (Beewax) जैसे उपयोगी पदार्थ मिलते हैं। शहद का उपयोग खाद्यपदार्थों और औषधियों के उत्पादन में किया जाता है। इनके द्वारा कुछ वनस्पतियों का परागण भी होता है। किसानों और बागवानी करने वाले के लिए ये अत्यधिक उपयोगी हैं।

(२) शार्क मछली :
शार्क मछली के यकृत से ‘शार्क लिवर आयल’ प्राप्त किया जाता है। भोजन के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता है। शार्क के पंखों की विदेशों में भी मांग है। शार्क की चमड़ी से कुछ वस्तुएँ तैयार करते हैं। पालतू प्राणियों के बने-बनाए खाद्यों में शार्क के मांस का बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है।

(३) याक : पहाड़ी तथा हिमाच्छादित क्षेत्रों में याक का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। नेपाल तथा तिब्बत में खेत की जुताई में याक का उपयोग करते हैं। परिवहन में भी याक उपयोगी होता है। अकाल की अवस्था में मजबूरी में कुछ स्थानों पर इसका मांस भी खाया जाता है। तिब्बत के निवासी इसके दूध और दूध से तैयार की चुरपी नामक चीज (पनीर) का उपयोग करते हैं। दूध से मक्खन तथा घी भी मिलता है। इसकी सूखाई गई विष्ठा का उपयोग ईंधन के रूप में (उपले बनाकर) किया जाता है I

(४)भेड़ : भेड़ों से मुख्य रूप से ऊन प्राप्त किया जाता है। कुछ स्थानों पर भोजन के रूप में भी इसके मांस का उपयोग होता है। गड़ेरिये इसके दूध का उपयोग करते हैं। भेड़ों की लेड़ी एक उत्तम प्रकार की प्राकृतिक खाद है। ये झाड़ियों की पत्तियाँ खाती हैं, जिससे जमीन की सफाई होती है।

(५)केंचुआ : यह जमीन में निरंतर घूमता रहता है, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और अनाज की उपज बढ़ती है। ये मिट्टी में पाए जाने वाले मृत प्राणियों के अवशेष को ही ग्रहण करते हैं और उनका अपघटन करते है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। केंचुओं की सहायता से कचरे का अपघटन करवाकर ‘केंचुआखाद’ तैयार करते हैं। केंचुए कई प्रकार से मिट्टी को उर्वर बनाते हैं, जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है। इन कारणों से किसानों का मित्र कहते हैं।

(६)कुत्ता : कुत्ते को स्वामिभक्त प्राणी कहा जाता है। वह अपने स्वामी के घर तथा सामान की रखवाली करता है। प्रशिक्षित कुत्तों का उपयोग विस्फोटक पदार्थों का पता लगाने में किया जाता है। गंध के आधार पर यह अपराधियों को पहचान सकता है। इसलिए पुलिसदलों में कुत्ता भी होता है। सेना में भी कुत्ते होते हैं। छोटे बच्चे कुत्ते के साथ खेलकर अपना मनोरंजन करते हैं। चिकित्सकीय शोध में भी कुत्ते का उपयोग किया जाता है।

(७)सीप : सीप ऐसा प्राणी है जिसका शरीर अत्यंत नरम परंतु शरीर एक कठोर आवरण में होता है। यह नदियों, तालाबों, सागर सर्वत्र पाया जाता है। इसका बाहरी कवच कैल्शियस से बना होने के कारण उपयोगी होता है। उससे हस्तकला द्वारा सुशोभन की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। निर्माण कार्य की सामग्री और औषधियों में भी सीपों का उपयोग होता है। सीप के अंदर के नरम भाग को कुछ लोग भोजन के रूप में खाते हैं। सीपों द्वारा मोती (Pearl) नामक मूल्यवान रत्न तैयार किया जाता है; जिसे संवर्धित (Cultured) मोती कहते हैं। यह प्राकृतिक मोती ही होता है।

(८)घोड़ा : घोड़ा एक पालतू प्राणी है, जिसका उपयोग कहीं आने-जाने में वाहन के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग बग्धी तथा एक्के में किया जाता है। कुछ लोग घोड़ों की दौड़-प्रतियोगिता का भी आयोजन करते हैं। सामान ढोने में भी घोड़े का उपयोग करते हैं। सेना तथा पुलिसदल में भी घोड़े होते हैं।

(९)चूहा : यह उपयोगी नहीं बल्कि हानिकारक तथा उपद्रवी प्राणी है। यह खेतों में, घरों में बिल बनाकर रहता है। खाद्यान्नों को यह खाने के साथ-साथ हानि पहुंचाता है। यह उपद्रवी प्राणी है। प्लेग रोग की महामारी इनके माध्यम से होती है। सफेद चूहों का उपयोग जीवविज्ञान की प्रयोगशाला में किया जाता है। इन पर विविध शोधकार्य भी किए जाते हैं।

प्रश्न ४. प्राणियों तथा वनस्पतियों के उपयोग लिखो।
वनस्पतियाँ : अदरक, आम, नीलगिरि, बबूल, सागौन, पालक, घीकुआर, हल्दी, तुलसी, कंजा, महुआ, शहतूत, अंगूर ।
उत्तर: अदरक : शुष्क अदरक, जिसे ‘सोंठ’ कहते हैं, उसका उपयोग पाग बनाने तथा औषधि के रूप में किया जाता है। उदर (पेट) के कई प्रकार के विकारों में गीली अदरक के रस का उपयोग होता है। सोंठ का उपयोग सिरदर्द, मितली आने और पित्तविकार में घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। कुछ लोग चाय में भी अदरक का उपयोग करते है।

आम : आम को फलों का ‘राजा’ कहते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु का फल है, परंतु कुछ आम बारहमासी भी होते हैं, जिनमें पूरे वर्षभर फल लगते हैं। आम में जीनवसत्त्व ‘A’ पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इससे अचार, मुरब्बा, चटनी, पना आदि पूरक खाद्यपदार्थ तथा पेय बनाते हैं। आम की अनेक जातियाँ हैं। पके आम के तैगूदे से अमावट तथा शरबत भी बनाते हैं। पत्तियों से तोरण तैयार करते हैं।

नीलगिरि : यह औषधीय वनस्पति है। इसकी सूखी पत्तियों और इससे तैयार किए गए तेल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। सर्दी तथा बुखार के लिए यह तेल एक रामबाण औषधि है। दुर्गन्ध दूर करने और स्वच्छता के लिए भी नीलगिरि का उपयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी भी उपयोग होती है। इसके तने की लकड़ी से कागज का उत्पादन किया जाता है I

बबूल : यह अत्यंत कठोर लकड़ी वाली वनस्पति है। इसकी पत्तियाँ तथा फलियाँ पशु खाते है। ग्रामीण क्षेत्रों, कुछ शहरों में लोग इसकी मुलायम पतली डालियों से दाँत स्वच्छ करते हैं। इसकी कांटेदार डालियों से बाड़ बनाई जाती । इसकी कठोर लकड़ी से कई प्रकार के फर्नीचर तैयार करते है I इससे प्राप्त गोंद का भी कई प्रकार से उपयोग किया जाता है।

सागौन :  अंग्रेजी में इसे Teak कहते है। इसकी लकडी कठोर तथा टिकाऊ होती है I इसलिए इसका सर्वाधिक उपयोग फर्निचर बनाने में किया जाता है। मकानों की खिडकियाँ तथा दरवाजे बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। यह महँगी लकडी वाली वनस्पति है। इसकी माँग की पूर्ति के लिए भारतीय वन विभाग सागौन के वृक्षों का बड़े पैमाने पर रोपण कर रहा है।

पालक : इस वनस्पति का उपयोग हरी सब्जी के रूप में किया जाता है। इसकी गंध प्रिय लगती है I इसमें कई जीवनसत्त्व तथा खनिज होते हैं। शरीर की बहुत-सी माँगों की पूर्ति पालक के सेवन से की जाती है। इसका रस निकालकर लोग पीते हैं। यह बुद्धिवर्धक तथा हृदय को स्वस्थ रखती है। कोष्ठबद्धता (कब्ज) की यह प्रभावकारी औषधि के रूप में ऊपयोगी है।

घीकुआर : इसे संस्कृत में ‘घृतकुमारी’ और अंग्रेजी में Aloevera कहते हैं। यह औषधीय वनस्पति है। त्वचा के विभिन्न रोगों के साथ-साथ जलने तथा कटने से हुए घावों के लिए यह अत्यंत गुणकारी औषधि है। इसके रस का उपयोग पाचनसंबंधी विकार दूर करने के लिए होता है। मधुमेह तथा कैंसर की औषधि के रूप में घीकुआर का उपयोग किया जाता है। इससे सौंदर्य प्रसाधन भी बनते हैं।

हल्दी : भोजन बनाने में उपयोगी यह रसोईघर का मुख्य मसाला है। इसमें औषधीय गुण पाए जाते हैं। घावों के शीघ्र भरने और जंतुनाशक औषधियाँ तैयार करने में इसका उपयोग किया जाता है। खाँसी-सर्दी जैसे विकारों में हल्दी के चूर्ण के साथ पकाए गए दूध का उपयोग लाभकारी होता है। कच्ची हल्दी का उपयोग सलाद बनाने में भी करते हैं।

तुलसी : यह ऐसी वनस्पति जिसे बहुत से लोग गमले में रोपकर अपने निवास या उसके समीप रखते हैं। यह औषधीय वनस्पति है। तुलसी की पत्तियों से निकाला गया रस कई प्रकार के विकार दूर करता है। इसके आसापास कीड़े-मकोड़े नहीं आते। इसके सूखे तने की लकड़ी से तुलसी-माला तैयार की जाती है। कई आयुर्वेदिक औषधियों का एक घटक तुलसी है। थाइलैंड के निवासी कुछ खाद्यपदार्थों में तुलसी की पत्तियों का उपयोग करते हैं। ‘कर्पूरतुलसी’ इसकी ऐसी किस्म है, जिससे तेल का उत्पादन किया जाता है।

कंजा : मराठी भाषा में इसे ‘करंज’ कहते हैं। कंजे से तेल तैयार किया जाता है। कई प्रकार के विकारों की गुणकारी औषधियाँ कंजे के बीजों से तैयार की जाती हैं। यह ऐसी वनस्पति है, जिसके फलों, पत्तियों, जड़ों, तने की छाल, बीज से तैयार तेल विभिन्न औषधियाँ बनाने में उपयोगी होता है।

महुआ:   गाँवों में आज भी आम के वृक्ष के बाद महुआ महत्त्वपूर्ण वृक्ष है। कुछ लोग तो महुए का बाग तैयार करते हैं। इसका फूल मीठे स्वादवाला होता है, जिसके रस से कुछ मीठे खाद्यपदार्थ (हलवा, ठोकवा) बनाए जाते हैं। इसके बीज को सुखाकर उत्तम गुणवत्तावाला तेल प्राप्त करते हैं। इसका तेल सिरदर्द, त्वचाविकार तथा संधिवात की दवाएँ बनाने में होता है। महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले में इसके फूलों से जॉम बनाया जाता है। आदिवासी लोग इसका उपयोग मादक पेय बनाने के लिए भी करते हैं।

शहतूत : शहतूत के पौधे तथा पत्तियों का मुख्य उपयोग है, रेशम का उत्पादन। इसके पौधे पर रेशम  के कीडे का पूरा ‘जीवचक्र’ पूर्ण होता है और उसके कोश से प्राकृतिक रेशम का धागा मिलता है। इसीलिए रेशम उत्पादन केंद्रों पर इसके पौधों का रोपण किया जाता है। इसके फल पकने पर पीले हो जाते हैं, जिन्हें ताजा अथवा सुखाकर खाया जाता है। इससे मादक पेय भी बनाते हैं।

अंगूर : अंगूर एक लता है। इसकी लता पर ही अंगूर का गुच्छा तैयार होता है, जिसमें अनेक अंगूर होते हैं। अंगूर बीजयुक्त तथा बीजरहित दो प्रकार के होते हैं। यह मौसमी फल है जिसका स्वाद बहुत मीठा होता है। अंगूरों को सुखाकर किशमिशें तैयार की जाती हैं। इनसे द्राक्षासव नामक औषधि तैयार की जाती है। इसमें जीवनसत्त्व भी पाए जाते हैं। एक विशेष प्रकार का मादक पदार्थ अंगूरों से बनाया जाता है।

प्रश्न ५. सूची में दिए गए सजीवों की हलचलों की कौन-कौन-सी विशेषताएँ हैं?
सजीव : साँप, कछुआ, कंगारू, गरुड़, गिरगिट, मेंढक, गुलमोहर, शकरकंद की लता, डॉल्फिन (वॅस), चींटी, रेटल साँप, टिड्डा, केंचुआ।
उत्तर : साँप : साँप बिना पैरवाला प्राणी है। हलचल के लिए यह शरीर के निचले भाग की पेशियों के आंकुचन-प्रसरण द्वारा रेंगकर चलता है।
कछुआ : कछुए दो प्रकार के होते हैं। जमीन पर रहने वाले कुछुए के पैरों में नाखून होते हैं I वह इन्हीं पैरों के सहारे हलचल करता है। पानी में रहने वाले कछुए के अगले पैर चप्पू जैसे अवयव में रूपांतरित हो गए हैं। इसलिए यह पानी में तैर सकता है। शरीर वजनदार होने के कारण यह मंद चाल से हलचल कर सकता है।

कंगारू : कंगारू के चार पैरों में से पिछले दोनों पैर पर्याप्त लंबे और शक्तिशाली होते हैं। परंतु अगले दोनों पैर अपेक्षाकृत बहुत छोटे होते हैं। इसलिए यह लंबी छलाँग लगाकर और कूद-कूद कर स्थान परिवर्तन (हलचल) करता है।

गरुड़: गरुड़ पक्षी है। उसके पंख लंबे, शुंडाकार तथा अत्यंत मजबूत होते हैं। इसलिए यह पंखों की सहायता से और आकाश में पर्याप्त ऊँचाई पर उड़कर हलचल करता है।

गिरगिट : गिरगिट के चार पैर होते हैं। शरीर वजनदार होता है। पैरों द्वारा शरीर का वजन सँभलता नहीं। इसलिए यह इन्हीं पैरों के सहारे रेंगकर हलचल करता है।

मेढक: यह उभयचर प्राणी है। चार पैरों में से अगले दो पैर छोटे तथा पिछले दोनों पैर अंग्रेजी के जेड (Z) के आकारवाले और बड़े होते हैं। पैर की अँगुलियाँ झिल्ली से जुडी होती हैं। इसलिए यह पानी में तैरकर तथा जमीनपर कूदकर यह हलचल करता है।

गुलमोहर : यह ऊँचा वृक्ष है। यह अपना स्थान नहीं बदल सकता। दिन में सूर्य के प्रकाश में इसकी पत्तियाँ आड़ी होकर तन जाती हैं। रात में ये खड़ी होकर परस्पर सिमट जाती हैं।

शकरकंद की लता : यह ऐसी वनस्पति है, जिसका तना अत्यंत कमजोर होता है। यह जमीन पर आसपास में फैलकर थोड़ी हलचल करती है। इसकी जड़ें खाद्य का संचय करती हैं, जो शकरकंद के रूप में खाया जाता है।

डॉल्फिन (वॅस): यह स्तनधारी तथा जलचर प्राणी है। इसका शरीर शुंडाकार तथा पंख युक्त होता है। इससे यह आसानी से तैरकर स्थान परिवर्तन (हलचल) करती है। स्तनधारी होने के कारण श्वसन के लिए यह समय-समय पर पानी के पृष्ठभाग पर आती है। यह बीच-बीच में कूदकर पानी के बाहर भी आती रहती है।

चींटी: चींटी के छह पैर होते हैं। इनके सहारे यह धीरे-धीरे चलती अर्थात, हलचल करती है। 

रेटल साँप : रेटल साँप को खुरदरा साँप कहते हैं। यह तेजी से रेंगकर हलचल करता है। इसकी हलचल को ‘साईड वाइडिंग’ कहते हैं, क्योंकि इसमें साँप एक ओर सरकता भी है।

टिड्डा : यह मजबूत तथा अपेक्षाकृत बड़े पंखवाला कीटक है। इसके छह पैर तथा चार पंख होते हैं। पिछले पैरों के सहारे एक मीटर लंबी कूद लगाकर स्थान परिवर्तन अर्थात, हलचल करता है।

केचुआ: केचुआ अपने शरीर पेशियों और उपचर्म की सहायता से रेंगकर हलचल करता है।

प्रश्न . आसपास पाए जानेवाले विभिन्न वनस्पतियाँ तथा प्राणी किस प्रकार उपयोगी अथवा हानिकारक हैं? इस विषय में विस्तार से जानकारी दो
उत्तर : हमारे आसपास के परिसर में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ तथा प्राणी पाए जाते हैं। उनमें से अधिकांश वनस्पतियाँ तथा प्राणी हमारे लिए उपयोगी ही होते हैं। कुछ वनस्पतियाँ  तथा प्राणी हानिकारक तथा उपद्रवी होते हैं। हमें जिनसे लाभ मिलता है, उन्हें पालते हैं और  जिनसे हानि होती हैं, उन पर हम नियंत्रण रखते हैं।इसके अनुसार हम अनाज, साग-सब्जी, फल  तथा फूल देने वाली वनस्पतियों की बोवाई-रोपाई करते हैं। अपतृणों, मोथे तथा अँकरी जैसी  हानिकारक वनस्पतियों को हम उखाड़कर या निराई करके अलग कर देते हैं।
उपयोगी प्राणी : खेती के विभिन्न कामों तथा परिवहन के लिए बैल, घोड़ा, ऊँट तथा याक; दूध के लिए गाय, भैंस; मांस के लिए बकरा, मुर्गी, मछली, घर की सुरक्षा के लिए कुत्ता आदि प्राणी  हमारे लिए उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त और बहुत-से प्राणी मानव के लिए उपयोगी होते हैं।
हानिकारक प्राणी : मच्छर, घरेलू मक्खी, पिस्सू, जूं आदि परजीवी कीटक रोगों का प्रसार करते हैं। चूहे-घूस, दीमक आदि खाद्यान्नों का  विनाश करते हैं। साँप तथा बिच्छू जैसे विषैले प्राणी प्राणघातक होते हैं। जंगली चीता, हाथी जैसे प्राणी समीपी मानव बस्तियों में घुसकर लोगों पर हमला करते हैं। इनके अतिरिक्त घुमंतू प्राणी, नीलगाय, कुछ पक्षी भी हानिकारक होते हैं।
उपयोगी वनस्पतियाँ : हम अपने दैनिक भोजन में जिन खाद्यपदार्थों का उपयोग करते हैं, उनमें से दाल, चावल, गेहूँ, साग-सब्जी इत्यादि वनस्पतियों से ही मिलते हैं। कई प्रकार के फल, फूल और औषधियाँ वनस्पतियों से मिलती हैं। वास्तव में प्रकृति की सभी वनस्पतियाँ हमारे लिए किसी न किसी रूप में उपयोगी होती ही हैं।
हानिकारक वनस्पतियाँ : केवाँच, अरवी जैसी वनस्पतियों के स्पर्शमात्र से खुजली होती है। कनेर जैसी कुछ वनस्पतियों में अप्रिय तथा तीक्ष्ण गंध निकलती है। धतूरा विषैली वनस्पति है। शैवाल तथा जलकुंभी की पानी में अत्यधिक वृद्धि होने पर, पानी तो दूषित होता ही है, साथ-साथ इनके सड़ने-गलने से जलस्रोत जलहीन हो जाते हैं।

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