Maharashtra State Board Class 7th Hindi Medium Geography (भूगोल)

प्रश्न  १. निम्न तालिका पूर्ण करो I

घटक

मृदा निर्मिति में भूमिका

मूल चट्टान

मूल चट्टान के अपरदन /क्षरण से मृदा का प्रकार निश्चित होता है।

प्रादेशिक जलवायु

प्रादेशिक जलवायु के अनुसार मृदा निर्मिति के लिए आवश्यक मूल चट्टान के अपरदन / क्षरण की प्रक्रिया की तीव्रता निश्चित होती है।

जैविक खाद

जैविक खाद द्वारा मृदा PH मूल्य संतुलित रखा जाता है।

सूक्ष्म जीवाणु

सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा मृत वनस्पतियों और प्राणियों का विघटन होने के कारण मृदा में हयुमस की मात्रा बढ़ती है।

प्रश्न  २. किस कारण ऐसा होता है ?

(१) सह्याद्रि के पश्चिम भाग में बेसाल्ट चट्टानों से लाल मृदा की निर्मिति होती है ।
उत्तर : (१) सह्याद्रि के पश्चिमी भाग (कोकण प्रदेश) में अधिक वर्षा होती है।
(२) इस भाग में आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
(३) इसके कारण इस क्षेत्र में बेसाल्ट नामक मूल चट्टान का बड़े पैमाने पर अपरदन होता है और लाल मृदा तैयार होती है।
(४) इस प्रकार सह्याद्रि के पश्चिमी भाग में बेसाल्ट चट्टानों से लाल मृदा निर्मित होती है।

(२) मृदा में ह्यूमस की मात्रा बढ़ती है ।
उत्तर : (१) वनस्पतियों की जड़ें, खर-पात, प्राणियों के मृतावशेष आदि जैविक पदार्थों के सड़ने पर सूक्ष्म जीवों द्वारा इनका विघटन होता है। परिणामस्वरूप, पोषक तत्त्व के रूप में जैविक घटकों अर्थात ह्यूमस का निर्माण होता है।
(२) यह ह्यूमस मृदा में मिश्रित हो जाता है।
(३) मृदा के PH मूल्य का संतुलन बनाए रखने में केंचुए की खाद, गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद आदि जैविक खादों का उपयोग किया जाता है। ये खादें सूक्ष्म जीवों द्वारा किए गए विघटन के उपरांत बनती हैं, अर्थात इनमें पर्याप्त मात्रा में ह्यूमस पाया जाता है।
(४) यह ह्यूमस मृदा में मिल जाता है। इस प्रकार मृदा में ह्यूमस की मात्रा बढ़ती है।

(३) विषुवतवृत्तीय जलवायुवाले प्रदेश में मृदा की निर्मिति की प्रक्रिया शीघ्र होती है ।
उत्तर : (१) विषुवत रेखीय जलवायु वाले प्रदेश में नम और उष्ण जलवायु पाई जाती है। यहाँ वर्षभर वर्षा होती है और वनस्पतियों की विविधता पाई जाती है।
(२) मृदा के निमार्ण में जलवायु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। चट्टान का अपरदन और ह्यूमस का निर्माण, इन दोनों बातों के लिए विषुवत रेखीय जलवायु बहुत अनुकूल है।
(३) इस जलवायु के प्रदेश में अत्यधिक वर्षा होने के कारण चट्टान का अपरदन तीव्र गति से होता है, साथ ही वनस्पति की जड़ें, खर-पात आदि के सड़न और विघटन को बढ़ावा मिलता है और ह्यूमस का निर्माण होता है। इससे मृदा की निर्मिति होती है।
इस प्रकार विषुवत रेखीय जलवायु वाले प्रदेश में मृदा की निर्मिति की प्रक्रिया शीघ्र होती है।

(४) मृदा में क्षारता की मात्रा बढ़ती है ।
उत्तर : (१) कृषि उत्पादन में बड़े पैमाने पर वृद्धि करने के लिए खेत की सिंचाई की जाती है।
(२) अतिरिक्त सिंचाई करने पर भूमि का क्षार नीचे-ऊपर आ जाता है और भूमि लवणयुक्त हो जाती है।
(३) इस प्रकार अतिरिक्त सिंचाई करने पर मृदा में क्षारता की मात्रा बढ़ती है।

(५) कोकण क्षेत्र के लोगों के भोजन में चावल अधिक मात्रा में होता है ।
उत्तर : (१) कोकण की उष्ण एवं आर्द्र जलवायु, काँप की मृदा और भरपूर वर्षा ये तीनों घटक चावल की फसल की वृद्धि के लिए अनुकूल होते हैं। इसके कारण कोकण में चावल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।
(२) स्थानीय उत्पादन के अनुसार मनुष्य का आहार निश्चित होता है;
इसलिए कोकण क्षेत्र के लोगों के भोजन में चावल अधिक मात्रा में होता है।

(६) मृदा का क्षरण होता है ।
उत्तर : (१) वर्षा के पानी और नदियों के प्रवाह के साथ मृदा की परत बह जाती है।
(२) गतिमान हवा के कारण भी मृदा की परत बह जाती है।
(३) जमीन की तीव्र ढलान के कारण मृदा की छीजन होती है।
(४) इस प्रकार बहते पानी, हवा, प्राकृतिक रचना की विविधता तथा जलवायु आदि घटकों के कारण मृदा का क्षरण होता है।

(७) मृदा की अवनति होती है ।
उत्तर : (१) कृषि से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों, कीटनाशकों, तृणनाशकों आदि का उपयोग किया जाता है।
(२) रासायनिक द्रव्यों का अतिरिक्त उपयोग करने के कारण मृदा के पोषक द्रव्य कम हो जाते हैं, मृदा में हयुमस की मात्रा कम हो जाती है और मृदा का PH मूल्य असंतुलित हो जाता है।
(३) अतिरिक्त सिंचाई के कारण मृदा में क्षार की मात्रा बढ़ती है। इससे मृदा की गुणवत्ता कम हो जाती है।
(४) इस प्रकार रसायन, खाद और सिंचाई का अतिरिक्त उपयोग करने से मृदा की अवनति होती है।

प्रश्न  ३. जानकारी लिखो I

(१) मृदा संवर्धन के उपाय ।
उत्तर : मृदा संवर्धन के कुछ उपाय नीचे दिए अनुसार हैं :
(१) वृक्षारोपण करना : वृक्षारोपण मृदा संवर्धन का महत्त्वपूर्ण उपाय है। वृक्षारोपण द्वारा वायु गति पर नियंत्रण रखा जा सकता है। इससे वायु द्वारा होने वाले मिटटी का क्षरण रुक जाता है। वनस्पतियों की जड़े मिट्टी को बांधे रहती हैं। इससे भी मृदा का क्षरण रुकता है।
(२) समान स्तर पर नालियाँ: मृदा संवर्धन के लिए पहाडी ढलान पर समान स्तर पर नालियाँ खोदी जाती हैं I ऐसे नालियाँ बनाने से ढलानवाले क्षेत्रों से आने वाले जल का वेग कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप मिटटी का क्षरण रुक जाता है। इन नालियों के कारण रुके हुए जल को जमीन में रिसने में सहायता मिलती है। इससे भूजल का स्तर बढ़ता है।
(३) अपवाह क्षेत्र विकास कार्यक्रम : महाराष्ट्र सरकार ने अपवाह क्षेत्र विकास के अंतर्गत ग्रामीण भागों में खेतों के ढलान वाले क्षेत्रों में मेड़बंदी करने का कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत चलाई जा रही ‘पानी रोको, पानी रिसाओ’ योजना सफल हुई है। इसी प्रकार भूजल स्तर में वृद्धि करने के सफल प्रयास हुए हैं और मृदा का क्षरण भी कम हुआ है।
(४) खेत तालाब योजना : महाराष्ट्र सरकार ने खेत तालाब योजना अभी हाल में ही शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत खेतों में बाँध बनाना, छोटे-छोटे नालों का पानी रोकना, नाले जोड़ना आदि काम बड़े पैमाने पर किए जा रहे हैं।

(२) जैविक पदार्थ
उत्तर : (१) केंचुए की खाद, गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद आदि जैविक खादें हैं।
(२) जिस मृदा में कृषि के लिए जैविक खादों का उपयोग किया जाता है, उसमें केंचुए, सहस्रपाद, दीमक, कनखजूरा, चींटियाँ आदि सूक्ष्म जीव बहुत पाए जाते हैं।
(३) ये सूक्ष्म जीव वनस्पतियों के जड़ें, खर-पात, प्राणियों के मृतावशेष आदि घटकों का विघटन करते हैं। इससे मृदा में ह्युमस की मात्रा बढ़ती है और मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
(४) इन कारणों से कृषि में जैविक खादों का उपयोग करना अत्यावश्यक है।

(३) खेती की मृदा विशिष्ट फसल उगाने के लिए सक्षम है क्या ? यह जानकारी कहाँ से प्राप्त करोगे ?
उत्तर : (१) विशिष्ट फसल उगाने के लिए खेती की मृदा सक्षम है क्या, इसकी जानकारी इन स्थानों पर मिल सकती है : महाराष्ट्र शासन-कृषि विभाग, जिला मृदा परीक्षण केंद्र, महाराष्ट्र का कृषि विश्व विद्यालय I
(२) जिला मृदा परीक्षण केंद्र पर मृदा का प्रकार, मृदा की उर्वरता, मृदा में ह्युमस की मात्रा आदि का परीक्षण किया जाता है।
(३) मृदा परीक्षण के आधार पर विशिष्ट फसल उगाने के लिए खेती की मृदा सक्षम है या नहीं, इस विषय में किसानों को जानकारी दी जाती है।

(४) वनस्पति जीवन में मृदा का महत्त्व लिखो ।
उत्तर : (१) वनस्पति जीवन पृथ्वी की जीवसष्टि का महत्त्वपूर्ण घटक है।
(२) वनस्पतियों की निर्मिती, वृद्धि एवं आधार के लिए मृदा का असाधारण महत्त्व है।
(३) केवल उचित जलवायु, पर्याप्त जल और सूर्यप्रकाश के होने से ही वनस्पति जीवन समृदध नहीं हो सकता।
(४) वनस्पतियों की उचित वृद्धि के लिए उपजाऊ मृदा भी महत्त्वपूर्ण होती है। मृदा और वनस्पति जीवन का संबंध निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है :
(अ) उपजाऊ मृदा और वनस्पति जीवन : उपजाऊ मृदा में वनस्पतियों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक द्रव्य बड़ी मात्रा में होते हैं। इसके कारण उपजाऊ जमीन में वनस्पति जीवन बहुत समृद्ध होता है; जैसे- विषुवत रेखीय प्रदेश।
(ब) अनुपजाऊ मृदा और वनस्पति जीवन : अनुपजाऊ मृदा में वनस्पतियों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक द्रव्य बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं। इसके कारण अनुपजाऊ जमीन में वनस्पति जीवन बहुत कम पाया जाता है; जैसे- मरुस्थलीय प्रदेश।
(क) मृदा का अभाव : मृदा के अभाववाले प्रदेश में वनस्पति जीवन नहीं पाया जाता; जैसे- ध्रुवीय प्रदेश।

प्रश्न . मृदा के संदर्भ में तालिका पूर्ण करो I

क्रिया

परिणाम

उर्वरता बढ़ती है/ कम होती है

मेंड़बंदी करना

उपजाऊ मृदा वर्षा जल के साथ नहीं बहती।

उर्वरता बढ़ती है|

वृक्षारोपण

हवा की गति कम हुई ।

उर्वरता बढ़ती है।

कुछ समय तक भूमि को परती रखना।

मृदा की उर्वरता बनी रहती है।

उर्वरता बढ़ती है।

जैविक खादों का उपयोग।

ह्यूमस की मात्रा बढ़ गई ।

उर्वरता बढ़ती है।

ढलान की दिशा में आड़ी  नालियाँ खोदना ।

ढलान से आने वाले पानी की गति कम होने से मृदा का क्षरण रुकता है।

उर्वरता बढ़ती है।

खेतों में खरपात जलाना ।

मृदा में राख की मात्रा बढ़ना I

उर्वरता कम होती है।

जैविक खादों का उपयोग।

सूक्ष्मजीवों के लिए पोषक सिद्ध हुए।

उर्वरता बढ़ती है।

अतिरिक्त सिंचाई

क्षारता की मात्रा बढ़ी।

उर्वरता कम होती है।

रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग करना ।

मृदा के सूक्ष्म जीवों और हयुमस की मात्रा कम होना।

उर्वरता कम होती है।

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